निगम ने ऊनी कालीनों का निर्माण करने वाली इकाईयों की सुविधा एवं समृद्धि के लिए कालीन धागे की आपूर्ति हेतु वर्ष 1972-73 में कच्चा माल भण्डार की स्थापना भदोही, जनपद वाराणसी में की गई थी। भदोही योजना के अन्तर्गत उधार माल देने की व्यवस्था थी और 30 दिन की उधारी के बाद बाद बैंक दर पर ब्याज सहित धन की वसूली की जानी थी व 1984-85 में विभिन्न समस्याओं के कारण योजना में प्रगति बहुत कम हो गई और बहुत सी इकाईयों पर बकाया राशि की वसूली में भी अवरोध उत्पन्न हो गया। योजना की समीक्षा कर वर्ष 1985 में नई योजना बनाने का प्रयास किया गया। नई योजना में नगद माल देने व औसत ब्याज वसूल करना प्रस्तावित था। नई योजना हेतु शासन से फण्ड न प्राप्त होने के कारण लागू नहीं हो सकी। पुरानी इकाईयों पर बकाया धनराशि चक्रवृद्धि ब्याज लगने के कारण समय के साथ काफी तेजी से बढती रही। बकाया धनराशि जमा करने में कुछ ही इकाईयँ सफल हुई। जिन इकाईयों ने बकाया धनराशि का भुगतान नहीं किया उनसे वसूली प्रमाण पत्र के माध्यम से वसूली का प्रयास किया गया। न्यायालयों में बाद प्रारम्भ होने के कारण प्रभावी वसूली नहीं हो सकी। निगम ने बकाया धनराशि की वसूली हेतु कालीन निर्माता एसोसिएशन स्तर पर भी प्रयास किया। साथ ही इकाईयों ने भी भारी ब्याज की माफी हेतु विभिन्न स्तरों पर प्रयास किये जिसके फलस्वरूप वर्ष 1987 में प्रदेश शासन ने पहली बार निर्णय लिया कि जो इकाईयाँ 31.03.87 तक बिल धनराशि का भुगतान कर दें उनकी ब्याज की प्रक्रिया बाद में निर्धारित की जायेगी। इसके अनुपालन में कुछ इकाईयों ने धन जाम किया। पुन: शासनादेश संख्या 2864 दिनाँक 25.07.89 द्वारा आदेशित किया गया कि जो इकाईयाँ 31.08.89 तक बिल धनराशि जमा कर देंगी उनसे साधारण ब्याज 10 प्रतिशत की दर से लिया जायेगा। ब्याज की अदायगी 4 छ:माही किस्तों में 31.08.91 तक जमा करनी थी। इस शासनादेश का पूर्णत: पालन किया उनको ब्याज की छूट शासनादेश के अनुसार रू० 2,10,83,186/- मात्र शासन से वर्ष 1993 में प्राप्त हो गई थी जबकि निगम ने 86 इकाईयों हेतु रू० 2,38,34,576.31 की छूट शासन से माँगी थी। 10 प्रतिशत इकाईयों की छूट की धनराशि रू० 27,51,390.31 की माँग बार-बार की गई किन्तु शासन ने अन्तिम रूप से मना कर दिया। निगम ने अवशेष 34 इकाईयों हेतु भी शासनादेश लागू करने हेतु तिथि बढाने के लिए शासन से अनुरोध किया उसे भी शासन ने स्वीकार नहीं किया। अब वे इकाईयाँ ही बची हैं जिन्होने शासनादेश के अनुसार साधारण ब्याज 10 प्रतिशत की दर से भी अपने देयों का भुगतान नहीं किया है। जिन इकाईयों पर देयों के भुगतान के लिए अधिक दबाव पडता है वे शासन से अनुरोध करती है कि उनसे बिल धनराशि ही ले ली जाये। कुछ एक इकाईयाँ शासनादेश के अनुसार 10 प्रतिशत ब्याज की दर से भुगतान की इच्छुक हैं। वसूली प्रमाण पत्र के विरूद्ध भी वसूली सम्भव नहीं हो पा रही है क्योंकि अधिकतर इकाईयों के बाद न्यायालय में लम्बित हैं। जिनमें न्यायालय की बाधा नहीं है उनमें या तो इकाईयों की सम्पत्तियाँ पूर्व में नीलाम हो चुकी हैं या सम्पत्ति न होने के कारण बकायेदारों को जेल में बन्द किया जा चुका है। जिन इकाईयों की सम्पत्तियाँ हैं उनका मूल्य भी ऋण धनराशि से बहुत कम है क्योंकि यह तथ्य निगम द्वारा गठित समिति द्वारा इकाईयों के भौतिक सत्यापन के दौरान प्रकाश में आया है। उपरोक्त से प्रतीत होता है कि इकाईयों से बकाया धनराशि की वसूली का निस्तारण नरम शर्तों से ही सम्भव हो सकता है। जिन इकाईयों से बकाया धनराशि की वसूली की जानी है उन पर निम्न प्रकार कार्यवाही की जा रही है:-
क्षेत्रीय प्रबन्धक, इलाहाबाद इकाईयों को पत्र एवं व्यक्तिगत रूप से सम्पर्क कर वसूली की कार्यवाही करते हैं।
जो इकाईयाँ क्षेत्रीय प्रबन्धक के अनुरोध पर धनराशि भुगतान नहीं करती है उनके विरूद्ध आर०सी० जारी करवाकर राजस्व अधिकारियों के माध्यम से वसूली की कार्यवाही की जाती है।
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